पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/६२

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शाप ७६ गयी कि जिस राजकुमार का शोक मनाया जा रहा है वह वही युवक है जो मेरी गुफा मे पड़ा हुआ है। मैंने उनसे पूछा, 'राजकुमार मुश्की घोड़े पर तो सवार नहीं थे। रानी-टो, हॉ, मुश्की घोड़ा था। उसे मैंने उनके लिए अरब देश से मँगवा दिया था। क्या तूने उन्हें देखा है ? मैं-हो, देखा है। रानी ने पूछा-कब ? मैं-जिस दिन वह शेर का शिकार खेलने गये थे। गनी -क्या तेरे सामने ही शेर ने उन पर चोट की थी ? मैं-हाँ, मेरी आँखो के सामने । रानी उत्सुक होकर खड़ी हो गयी और बड़े दीन भाव से बोली- उनकी लाश का पता लगा सकती है ? मैं-ऐसा न कहिए, वह अमर हो । वह दो सप्ताहों से मेरे यहाँ मेहमान हैं। गनी हर्पमय आश्चर्य से बोली-मेरा रणधीर जीवित है ? मैं-हों, अब उनमें चलने-फिरने की शक्ति आ गयी है। रानी मेरे पैरों पर गिर पड़ी। तीसरे दिन अर्जुन नगर की कुछ और ही शोभा थी। वायु आनन्द के मधुर स्वर से गूंजती थी, दूकानों ने फूलों का हार पहना था, बाजारों में आनन्द के उत्सव मनाये जा रहे थे | शोक के नीले वस्त्रों की जगह केसर का नुहावना रन बधाई दे रहा था। इधर सूर्य ने उपा-सागर से सिर निकाला। उधर सलामिया दगना प्रारम्भ हुई। अागे-आगे मैं एक सब्जा घोड़े पर सवार आ रही थी और पीछे राजकुमार का हाथी सुनहरे भूलो से उजा चला पाता था । स्त्रियाँ अटारियो पर मङ्गल के गीत गाती थीं और पुष्यों की वृष्टि करती थीं। गज-भवन के द्वार पर रानी मोतियों से चल भरे खड़ी थीं, ज्योही राजकुमार हाथी से उतरे, वद उन्हें गोद में लेने के लिए दौड़ी और छाती से लगा लिया । ऐ मुसाफिर, 'ग्रानन्दोत्सव समाप्त होने पर जब मैं विदा होने लगी, तो गनी महोदया ने सजल नयन होकर कहा :-