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स्वामिनी


मेहनत - मजूरी करो और मैं मालकिन बनकर बैहूँ ? काम-धन्धे में लगी रहूंगी, तो मन बहलता रहेगा, बैठे-बैठे तो रोने के सिवा और कुछ न होगा। शिवदास ने समझाया --- बेटा, दैवगति से तो किसी का बस नहीं, रोने-धोने से हलकानी के सिवा और क्या हाथ आयेगा ? घर में भी तो नीसा काम हैं। कोई साधु-सन्त आ जायें, कोई पाहुना ही आ पहुँचे, उनके सेवा-सत्कार के लिए किसी को तो घर पर रहना ही पड़ेगा।

बहू ने बहुत-से होले किये, पर शिवदास ने एक न सुनी।

( २ )

शिवदास के बाहर चले जाने पर रामप्यारो ने कुली उठाई तो उसे मन में अपूर्व गोरख और उत्तरदायित्व का अनुभव हुआ। जरा देर के लिए पति-वियोग का दुःख उसे भूल गया। उसकी छोटी बहन और देवर दोनों काम करने गये हुए थे। शिवदास बाहर था। घर बिलकुल खाली था। इस वक वह निश्चित होकर भण्डारे को खोल सकती है। उसमें क्या-क्या सामान है, क्या-क्या विभूति है; यह देखने के लिए उसका मन लालायित हो उठा। इस घर में वह कभी न आई थी। जब कभी किसी को कुछ देना या किसी से कुछ लेना होता था, तभो शिवदास आकर इस कोठरी को खोला करता था। फिर उसे बन्द कर वह ताली अपनी कमर में रख लेता था। रामप्यारी कभी-कभो द्वार को दराजों से भीतर झांकतो थो; पर अँधेरे में कुछ न दिखाई देता था। सारे घर के लिए वह कोठरी कोई तिलिस्म या रहस्य था जिसके विषय में भाति-भांति की कल्पनाएँ होती रहती थीं। आज रामप्यारी को वह रहस्य खोलकर देखने का अवसर मिल गया। उसने बाहर का द्वार बन्द कर दिया कि कोई उसे भण्डार खोलते न देख ले, नहीं सोचेगा, बेज़रत इसने क्यों खोला। तब आकर काँपते हुए हाथों से ताला खोला। उसकी छाती घड़क रही थी कि कोई द्वार न खटखटाने लगे। अन्दर पांव रखा तो उसे कुछ उसो प्रकार का, लेकिन उससे कहीं तीन भानन्द हुभा जो से अपने गहने-कपड़े को पिटारी खोलने में होता था। मर्को में गुरु, शकर, गेहूं, जो आदि चीजें रखी हुई थी। एक किनारे बड़े-बड़े बर्तन धरै थे, जो शादी-ब्याह के अवसर पर निकाले जाते थे, या मांगे दिये जाते थे। एक भाले पा मालगुजारी को रसोदे और लेन-देन के पुरजे बँधे हुए रखे थे। कोठरी में एक विभूति-सी छाई थो, मानो लक्ष्मी अज्ञात रुप से विराज रही हो। टस विभूति क