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स्वामिनी

प्यारी उसकी सरलता पर हंसकर बोली --- अरे तो मैं तुझे कुछ कह थोड़ी रही हूँ, पागल ! मैं तो यह कहती हूँ कि जान रखकर काम कर । कहीं बीमार पड़ गया, तो लेने के देने पड़ पायेंगे।

जोखू --- कौन बीमार पड़ जायगा, मैं ? बोस साल में कभी सिर तक तो दुखा नहीं, आगे की नहीं जानता। कहो रात-भर काम करता रहूँ।

प्यारी --- मैं क्या जानें, तुम्ही अंतरे दिन बैठ रहते थे, और पूछा जाता था, तो कहते थे-जुर भा गया था, पेट में दरद था।

जोखू झेंपता हुआ बोला --- वह वाते जब थीं, जब मालिक लोग चाहते थे कि इसे पीस डालें। अब तो जानता हूँ, मेरे हो माधे हैं। मैं न करूंगा तो सब चौपट हो जायगा।

प्यारी में क्या देख-भाल नहीं करती ?

जोखू --- तुम बहुत करोगी, दो बेर चलो जावगी। सारे दिन तुम वहाँ बैठी. नही रह सकती।

प्यारी को उसके निष्कपट व्यवहार ने मुग्ध कर दिया। बोली --- तो इतनी रात गये चूल्हा जलाओगे। कोई सगाई क्यों नहीं कर लेते ?

जोखू ने मुँह धोते हुए कहा -तुम भो खूब कहतो हो मालकिन । अपने पेट-भर को तो होता नहीं, सगाई कर लूँ। सवा सेर खाता हूँ एक जून-पूरा सवा सेर ! दोनों जून के लिए दो सेर चाहिए।

प्यारी --- अच्छा, आज मेरी रसोई में खाओ, देखू कितना खाते हो !

जोखू ने पुलकित होकर कहा --- नहीं मालकिन, तुम अनाते-बनाते थक जावगी। हाँ, माध-आध सेर के दो रोट बनाकर खिला दो, तो खा लूं। मैं तो यही करता हूँ। क्स, आटा सानकर दो लिट बनाता हूँ और उपले पर सेंक लेता हूँ। कभी मठे से, कभी नमक से, कभी प्याज से खा लेता हूँ और आकर पड़ रहता हूँ।

प्यारी --- मैं तुम्हें आज फुलके खिलाऊँगी।

जोखू --- तब तो सारी रात खाते ही बीत जायगी।

प्यारो --- वको मत, चटपट आकर बैठ जाओ।

जोखू --- जरा बैलों को सानी-पानी देता आऊँ तो बैठूँ ।