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मानसरोवर

हल्कू --- आज और जादा खा ले। कल से मैं यहाँ पुाले निछा दूंगा। उसी में धुसकर बैठना तब जामान लगेगा।

जबरा ने अगले पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिये और उसके मुंह के पास अपना मुँह ले गया। हत्कू को उसकी गर्म साँस लगी।

चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके बेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊँगा पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कंपन होने लगा। कभी इसे करवट लेटता, कभी उस करवट ; पर जाड़ा किसी पिशाच की भांति उसकी छाती को दबाये हुए था।

जब किसी तरह न रहा गया, तो उसने जब को घोरे से उठाया और उसके सिर को थपथपाकर उसे अपनी गोद में सुला लिया। कुत्ते को देह से जाने कैसी दुर्गन्ध भा रही थी। पर वह उसे अपनी गोद से-चिमटाये हुए ऐसे सुख का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था। जबरा शायद समझ रहा था कि स्वर्ग यही है ; और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा को गन्ध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता। वह अपनी दोनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा को पहुँचा दिया। नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सम द्वार खोल दिये थे और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।

सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पाई। इस विशेष आत्मीयता ने उसमें एक नई स्फूर्ति पैदा कर दी थी, जो हवा के ठण्डे मौकों को तुच्छ समझती थी। वह मकर सठा और छतरी के बाहर आकर भूकने लगा! हल्कू ने उसे कई बार चुमकारकर बुलाया ; पर वह उसके पास न आया। हार में चारों तरफ दौड़-दौड़कर भूकता रहा। एक क्षण के लिए भा भी जाता, तो तुरन्त ही फिर दौड़ता। कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भांति उठल रहा था।

( ३ )

एक घण्टा और गुज़र गया। रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरू किया। हरकू उठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया। फिर भी टण्ड कम हुई। ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है, धमनियों में रक्त की जगह हिम बह रहा है। उसने झुककर आकाश की और देखा, अभी कितनी