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मानसरोवर


है। और वह औरतें जो कुछ करती हैं, ठीक करती हैं। उनके घरवाले भी तो चमारिनों और कहारिनों पर जान देते फिरते हैं। लेना-देना बराबर हो जाता है। बेचारे मरीज आदमियों के लिए यह बातें कहा । मेरे आदमी के लिए संसार में जो कुछ हूँ, मैं हूँ। वह किसी दूसरी मेहरिया की और आँख उठाकर भी नहीं देखता। सयोग की बात है कि मैं तनिक सुन्दर हूँ; लेकिन मैं काली-कलूटी भी होती, तब भी वह मुझे इसी तरह रखता । इसका मुझे विश्वास है । मै चमाग्नि होकर भी इतनी नौच नही हूँ कि विश्वास का बदला खोट से हूँ। हाँ, वह अपने मन की करने लगे मेरी छाती पर मूंग दलने लगे, तो मैं उसकी छाती पर मूंग दलूगी। तुम मेरे रूप ही के दीवाने हो न ? आज मुझे माता निकल आयें, कानी हो जाऊँ, तो मेरी भोर ताकीगे भी नहीं। घोलो, झूठ कहती हैं।

चैनसिंह इनकार न कर सका।

मुलिया ने उसी गर्व से भरे हुए स्वर में कहा --- लेकिन मेरी एक नहीं, दोनों भाख फूट जायें, तब भी वह मुहे इसी तरह रखेगा । मुझे उठावेगा, बैठावेगा, खिला- वेगा। तुम चाहते हो, मैं ऐसे आदमी के साथ कपट करूं? जाओ,'अब मुझे कभी न छेड़ना, नही अच्छा न होगा!

( ३ )

जवानी जोश है, एक है, दया है, साहस है, भात्म-विश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ जी जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है। जवानी का नशा धमंड है, नियता है, स्वार्थ है, शेखी है, विषय वासना है, कटुता है और वह सब कुछ जो जीवन को पशुता विकार और पतन की ओर ले जाता है। चैनसिंह पर जवानी का नशा था। मुलिया के शीतल छोटों ने नशा उतार दिया, जैसे हुई चाशनी में पानी के छीटे पड़ जाने से फेन मिट जाता है, मेल निकल जाता है और निर्मल, शुद्ध रस निकल आता है । जवानी का नशा जाता रहा, केवल जप । रह गई । कामिनी के शब्द जितनी आसानी से दोन और ईमान को ग्रास्त कर हैं, उतनी ही आसानी से उनका उद्धार भी कर सकते हैं।

चैनसिंह उस दिन से दूसरा ही आदमी हो गया। गुस्सा उसकी नाक पर था, बात-बात पर मजदूरों को गालियां देना, डाँटना और पीटना उसको आदत थी असामी उससे थरथर कापते थे। मजदूर उसे आने देखकर आते काम में चस्त