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घासवाली


अँगरेज़ी फैशन के जवान वकील साहव बैठे थे। उन्होंने पायदान के पास पास रखवा ली, जेब से कुछ निकालकर मुलिया को दिया। मुलिया मुसकिगई। दोनों में कुछ पाते भी हुई, जो चैनसिह न सुन सके ।

एक क्षण में मुलिया प्रसन्न मुख घर की और चली। चैनसिह पानवाले की दूकान पर विस्मृति की दशा में खड़ा रहा । पानवाले ने दुकान पढ़ाई कपड़े पहने और अपने कैसिन का द्वार बन्द करके नीचे उतरा तो चैनसिंह की समाधि टूटी। पूछा- क्या दूकान बन्द कर दी।

पानवाले ने सहानुभूति दिखाकर कहा --- इसकी दवा करो ठाकुर साहब, यह बीमारी अच्छी नहीं है।

चैनसिंह ने चलित होकर पूछा --- कैसी बीमारी ?

पानवाला बोला --- कसी बीमारी! आध घण्टे से यहां खड़े हो जैसे कोई सुरक्षा खड़ा हो । सारी कचहरी खाली हो गई, सब दुकानें वन्द हो गई, मेहतर तक झा, लगाकर चल दिये, तुम्हें कुछ खबर हुई । यह बुरी बीमारी है जल्दी दवा बरा डालो।

चैनसिंह ने छड़ी संभालो और फाटक को ओर चला कि महावीर डा एका सामने से आता दिखाई दिया।

( ५ )

कुर दूर एका निकल गया, तो चैनसिंह ने पूछा --- आज तिने पैसे कमाये महावीर ?

महावीर ने हंसकर कहा --- आज तो मालिक, दिन-भर खदा ही रह गया। किसो ने बेगार में भी न पकवा । कपर से चार पैसे को बोड़ियां पी गया ।

चनसिंह ने जरा देर के बाद कहा --- मेरी एक सलाह है । तुम मुझसे एक रुपया रोज़ ले लिया करो ' वस, जब मैं बुलाऊँ, तो एका लेकर चले आया बरो। सब तो तुम्हारी घरवाली को घास लेकर बाजार न आना पड़ेगा। बोलो, मजूर है।

महावीर ने सजल आंखों से देखकर कहा --- मालिक, भाप हो का तो खाता हूँ। आपकी परजा हूँ ! जब मरजी हो, पहना मैंगवाइए । आपसे रुपये...

चैनसिंह ने बात काटकर कहा --- नही, मैं तुमसे चार नहीं लेना चाहता । तुम मुझसे एक रुपया रोज ले जाया करो। घास लेकर घरवाली को बाजार मत भेा करो। तुम्हारी आवत मेरी आवरू है । और भी रुपये पैसे का जब काम लगे, देखरके चले आया