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रसिक सम्पादक


में तपा है । मैं इसे अपना परम सौभाग्य समझूँगा, यदि आपके दर्शनों का सौभाग्य पा सका। यह कुटिया अनुराग को भेंट लिये आपका स्वागत करने के लिए तढप रही है।'

तीसरे ही दिन उत्तर आ गया । कामाक्षी ने बड़े भावुकत्ता पूर्ण शब्दों में कृतज्ञता प्रकट की थी और अपने आने की तिथि बताई थी।

( २ )

आज कामाक्षी का शुभागमन है ।

शर्माजी ने प्रातःकाल हजामत बनवाई, साबुन और बेसन से स्नान किया, महीन खद्दर की धोती, कोकटी का ढोला चुन्नटदार करता, मलाई के रंग की रेशमी चादर । इस ठाट से आकर कार्यालय में बैठे, तो सारा दफ्तर गमक उठा। दफ्तर को भी खूब सफाई करा दी गई थी। बरामदे में गमले रखवा दिये गये थे, मेज़ पर गुलदस्ते सजा दिये गये थे। गाड़ी नौ बजे आती है; अभी साढे आठ हैं, साढ़े नौ बजे तक यहा आ जायेंगी। इस परेशानी में कोई काम नहीं हो रहा है। भार पार पडो की, ओर ताकते हैं। फिर आईने में अपनी सूरत देखकर कमरे में टहलने लगते है । सूछौं' में दो-चार बाल पके हुए नजर मा रहे हैं । पर उन्हें उखाड़ फेंकने का इस समय कोई सावन नहीं है। कोई हरज नहीं । इससे रग कुछ और ज़्यादा जमेगा । प्रेम जय. श्रद्धा के साथ आता है तो वह ऐसा मेहमान हो जाता है, जो उपहार लेकर आया हो। युवकों का प्रेम खर्चीलो वस्तु है । लेकिन महात्माओं या महात्मापन के समीप पहुंचे हुए लोगों का प्रेम- उलटे और कुछ ले आता है। युवक जो रंग बहुमुल्य उपहारों से जमाता है, ये महात्मा या अर्द्ध महात्मा लोग केवल आशीर्वाद से जमा लेते हैं।

ठीक साढ़े नौ बजे चपरासी ने आकर एक कार्ड दिया । लिखा था --- 'कामाक्षी'।

शर्माजी ने उसे देशीजो को लाने की अनुमति देकर एक बार फिर आईने में अपनी सूरत देखी और एक मोटी-सी पुस्तक पढ़ने लगे, मानों स्वाध्याय में तन्मय हो गये हैं। एक क्षण में देवीजी ने कमरे में कदम रखा। शर्माजी को उनके आने की खबर न हुई।

देवीजी डरते डरते समौम मा गो, तब शर्माजी ने चौंककर सिर उठाया, मानों- समाधि से जाग पड़े हों, और खड़े होकर देवीजी का स्वागत किया। मगर यह वह मूर्ति न थी, जिसकी उन्होंने कल्पना कर रखी थी !

एक काली, मोटी, अधेड़, चचल औरत थी, जो शर्माजी को इस तरह घूर रह