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मानसरोवर


एक हाथ से पकड़े हुए है। कितनी प्रसन्न है। शायद कोई गीत गा रहा है। इस, मशक से पानी लड़ेला ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वत्ता है। उनके मुरू पर, काला चुरा, नीचे सफेद अचकन, अचक्कन के सामने की जेब में घड़ी की सुनहरी ज़ीर, एक हाथ में कानून का पौथा लिये हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बद्दस किये चले आ रहे हैं। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं। हामिद पास कुल तीन पैसे हैं। इतने मँहगे खिलौने वह कैसे ले ? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े, तो चूर-चूर हो जाय ! ज़रा पानी पड़े तो सारा रग धुल जाय। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा, किस काम के ! '

मोहसिन कहता हैं--- मेरा भिश्ती रोज़ पानी दे जायेगा ; साँझ-सवेरे।

महमूद ---और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा। कोई चौर आयेगा, तो फौरन बन्दूक फैर कर देगा।

नूरे और मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा।

सम्मी और मेरी धोबिन रोज कपड़े धोयेगी।

हामिद खिलौनों की निन्दा करता है---मिट्टी ही है तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जायें; लेकिन ललचाई हुई अखिों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि अरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते, विशेषकर जब अभी नया शौक हैं। हामिद कल्चता रह जाता है।

खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हैं, किसी ने गुलाम जामुन, किसी ने सोहन हलवा। मज़ से खा रहे हैं। हामिद उनकी बिरादरी से पृथक है। अभागे ३ पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता १ ललचाई अखि से सबकी ओर देखता हैं।

मोहसिन कहता है--- हामिद, यह रेउड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है !

हामिद को सन्देह हुआ, यह केवल क्रूर विनोद है, मोहसिन इतना उदार नहीं है। लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोहसिन दोने से एक रेउड़ी निकालकर हामिद की और बढ़ाता है। हामिद हाथ फैलाता है। मोहसिन रेउड़ीं अपने मुंह में रख लेता है। महमूद, नूरे और सम्मी खूब तालियाँ बजा-धजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है।