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मानसरोवर


कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेगी---भेरा बच्चा अम्माँ के लिए चिमटा लाया है। हज़ारों दुआएँ देंगी। फिर पड़ोस की औरत को दिखायेंगी। सारे गाँव में वरचा होने लगेगी, हामिद चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआएँ देगा। बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, और तुरन्त सुनी जाती हैं। मेरे पास पैसे नहीं हैं। तभी तो मोइसिन और मद्दमूरू यो मिजाज़ दिखाते हैं। मैं भी इनसे मिजाज़ दिखाऊँगा। खेलें खिलौने और खायूँ मिठाइयाँ। मैं नहीं खेलता खिलौने, किसी का मिजाज व सहूँ।, मैं गरीब सही, किसी से कुछ माँगने तो नहीं जाता। आखिर अब्बाजान कभी-न-कभी आयेंगे। अम्माँ भी आयेगी ही। फिर इन लोगों से पूछेगा, कितने खिलौने लगे ? एक-एक को दौकरियों खिलौने दें और दिखा दें कि दोस्तों के साथ इस तरह सलूक किया। जाता है। यह नहीं कि एक पैसे की रेउड़ियाँ ली तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे। सब-के-सब खूब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हँसे। मेरी बला से। उसले दुकानदार से पूछा---यह चिमटा कितने का है ?

दूकानदार ने उसकी और देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा--ब्रह तुम्हारे काम का नहीं है जी ! - ‘विकाऊ है कि नहीं है।’

‘बिकाऊ क्यों नहीं है। और यहीं क्यों लाद लायें हैं ? ’

‘तो बताते क्यों नहीं, के पैसे का है ?’

‘छै पैसे लगेंगे।’

‘हामिद का दिल बैठ गया।’

‘ठीक-ठीक बताओ।'

‘ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।’

‘हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा---तीन पैसे लोगे ?’

यह तो हुआ वह आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियाँ नहीं दीं। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह धे पर रखा, मानें बन्दूक है और शान से अकृढ़ता हुआ सङ्घियों के पास आया। जरा सुने, सब-के-सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं। '

मोहसिन ने हँसकर कहा---यह चिमटा क्यों लाया पगले। इसे क्या करेगा।