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ईदगाह

हामिद ने चिमटे को ज़मीन पर पटकर कहा--ज़र अपना भिश्ती ज़मीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जायें बचा की।

महमूद बोला---तो यह चिमटा कोई खिलौना है ?

हामिद---खिलौना क्यों नहीं है ? अभी कन्धे पर रखा, वन्दुक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया, चाहें तो इससे मजीरे का काम ले सकता हैं। एक चिमटी जमा हैं, तो तुम लोगों के सारे खिलौने की जान निकल जाय। तुम्हारे खिलौने कितना हो जोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भो बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है--चिमटा।

सम्मी ने खेजरो ली थी। प्रभावित होकर बोला---मेरो खेजरी से बदलोगे ? दो आने की है।

हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा -मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारो बँजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। ज़रा-सा पानी ला जाय तो खतम हो जाय। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, अधो मे, तूफ़ान में, बराबर इटा खड़ा रहेगा।

चिमटे ने भी सभी को मोहित कर लिया ; लेकिन अब पैसे किसके पाख़ धरे हैं। फिर मेले से दूर निकल आये हैं, नौ कव के चञ गये, धूप तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी हो रही है। बाप से ज़िद भो करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक। इसी लिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।

अब बालकों के दो दल हो गये हैं। मोहसिन, महमूद, सुम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला धूसरी तरफ। शास्त्रार्थ हो रहा है। सम्मी तो विधी हो गया। दूसरे पक्ष से जा मिला; लेनिन मोहसिन, महमूद और नुरे भी, हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघात से आतंकित हो उठे हैं। उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टो है, दूसरो और लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है । वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर। जाय, तो मियाँ भिश्तो के छक्झे छूट जायें, मियाँ सिपाही मिट्टो को बन्दुक छोड़कर भागे, वोल साह्य को नानी मर जाय, चुरों में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जावें। मगर यह चिमटा, यह वहादुर, यह रुस्तमे-हिन्द लपककर शेर को गरदन पर सवार हो जायगा और उसकी अखें निकाल लेगा।