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बेटोंवाली विधवा


कैदी छिपकर जेल से भाग आया हो। फूलमतो अपने नियम के विरुद्ध आज तड़के ही उठी, रात-भर में उसका मानसिक परिवर्तन हो चुका था। सारा घर सो रहा था और वह आँगन में झाडू लगा रही थी। रात-भर ओस में भीगी हुई पकी ज़मीन उसके नगे पैरों में काँटों की तरह चुभ रहो थी। पण्डितजी उसे कभी इतने सवेरे उठने न देते थे। शोत उसके लिए बहुत हानिकर था; पर अब वह दिन नहीं रहे। प्रकृति को भी समय के साथ बदल देने का प्रयत्न कर रही थी। झाडू से फुर्सत पाकर उसने आग जलाई और चावल-दाल की ककड़ियाँ चुनने लगी। कुछ देर में लड़के जागे। बहु उठी। सभों ने बुढ़िया को सर्दी से सिकुड़े हुए काम करते देखा, पर किसी ने यह न कहा कि अम्मा, क्यों हलकान होती हो ? शायद सब-के-सव बुढ़िया के इस मान-मर्दन पर प्रसन्त थे।

आज से फूलमती का यही नियम हो गया कि जी तोड़कर घर का काम करना, और अन्तरग नीति से अलग रहना , उसके मुख पर जो एक आत्मगौरव झलकता रहता था, उसकी जगह अव गहरो वेदना छाई हुई नज़र आती थी। जहाँ बिजली जलती थी, वहाँ अब तेल का दिया टिमटिमा रहा था, जिसे बुझा देने के लिए हवा का एक हलकासा झोंका काफ़ी है।

मुरारीलाल को इन्कारी पत्र लिखने की बात पक्को हो ही चुकी थी। दूसरे दिन पत्र लिख दिया गया। दीनदयाल से कुमुद का विवाह निश्चित हो गया, दोनदयाल की उम्र चालीस से कुछ अधिक थी, मर्यादा मे भी कुछ हेठे थे , पर रोटी-दाल से खुश थे। बिना किसी ठहराव के विवाह करने पर राजो हो गये। तिथि नियत हुई, बारात आहे, विवाह हुआ और कुमुद बिदा कर दी गई। फूलमती के दिल पर क्या गुजर रही थी, उसे कौन जान सकता है। कुमुद के दिल पर क्या गुज़र रही थी, इसे कौन जान सकता है, पर चारों भाई बहुत प्रसन्न थे, मानों उनके हृदय का कोटा निकल गया हो। ऊँचे कुल की कन्या, मुंह केसे खोलती। भाग्य में सुख भोगना लिखा होगा, सुख भोगेगी, दुख भोगना लिखा होगा, दुःख झेलेगी। हरि-इच्छा बेकों का अन्तिम अवलम्व है। घरवालों ने जिससे विवाह कर दिया, उसमें हजार ऐब हो, तो भी वह उपका उपास्य, उसका स्वामी है। प्रतिरोध उसकी कल्पना से परे था।

फूलमती ने किसी काम में दखल न दिया। कुमुद को क्या दिया गया, मेहमानों का कैसा सत्कार किया गया, किसके यहाँ से नेवते में क्या आया, किसी बात से भी