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घरजमाई
एक दिन उसने सुना, गुमानो ने दुसरा घर कर लिया। माँ से बोला—तुमने सुना काकी। गुमानी ने घर कर लिया।
काकी ने कहा― घर क्या कर लैगी, ठट्ठा है! बिरादरी में ऐसा अन्धेर? पंचायत नहीं, अदालत तो है?
हरिधन ने कहा― नहीं काकी, बहुत अच्छा हुआ। ला, महावीरजी को लड्डू चढ़ा आऊँँ। मैं तो डर रहा था, कहीं मेरे गले न आ पड़े। भगवान् ने मेरी सुन ली। मैं वहाँ से यही ठानकर चला था, अब उसका मुँँह न देखूँगा।
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