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उन्माद


उसकी छाती पर चढ बैठी। वागीश्वरी ने उसका हाथ पकड़कर अलग कर दिया और बोली-तुम ऐसी डायन न होतीं, तो उनको यह दशा ही क्यों होती ?

जेनी ने तैश में आकर जेब से पिस्तौल निकाली और वागीश्वरी की तरफ बढी। सहसा मनहर तड़पकर उठा, उसके हाथ से भरा हुआ पिस्तौल छीनकर फेंक दिया और वागीश्वरी के सामने खड़ा हो गया । फिर, ऐसा मुंह बना लिया, मानो कुछ हुआ ही नहीं।

उसी वक्त मनहर की माता दोपहरी की नींद सोकर उठी और जेनी को देखकर वागीश्वरी को ओर प्रश्न की आँखों से ताका।।

वागीश्वरी ने उपहास के भाव से कहा-यह आपकी बहू हैं।

बुढिया तिनककर बोली-कैसी मेरी बहू! यह मेरी बहू बनने जोग है बंदरिया ? लड़के पर न जाने क्या कर-करा दिया, अब छाती पर मूंग दलने आई है ?

जेनी एक क्षण तक खून-भरी आँखों से मनहर की ओर देखती रहो। फिर विजली की भांति कौंदकर उसने आंगन में पड़ी हुई पिस्तौल उठा ली और वागोमरी पर छोड़ना चाहती थी कि मनहर सामने आ गया। वह वेधड़क जेनी के सामने चला गया, उसके हाथ से पिस्तौल छीन ली और अपनी छाती में गोली मार ली।



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