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मानसरोवर


हत्याएँ इन्हीं बुराइयों के कारण हो जाती हैं, लाखो स्त्रियाँ पतित हो जाती हैं, पुरुष मद्य-सेवन करने लगते हैं, यह वात है या नहीं ?

कानूनी--बहुत-सी बुराइयाँ ऐसी हैं, जिन्हे कानून नहीं रोक सकता ।

मिसेज़-(कहकहा मारकर ) अच्छा, क्या आप भी कानून को अक्षमता स्वीकार करते हैं ? मैं यह न समझती थी। मैं तो कानून को ईश्वर से ज्यादा सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान् समझती हूँ।

कानूनी-फिर तुमने मज़ाक शुरू किया ।

मिसेज़--अच्छा, लो कान पकड़ती हूँ। अब न हँसूँगी । मैंने उन बुराइयों को रोकने का एक कानून सोचा है। उसका नाम होगा--'दम्पति-सुख-शान्ति-बिलं'। उसकी दो मुख्य धाराएँ होंगी और कानूनी बारीकियाँ तुम ठीक कर लेना । एक धारा होगी कि पुरुष अपनी आमदनी का आधा बिना कान-पूछ हिलाये स्त्री को दे दे। अगर न दे, तो पांच साल कठिन कारावास और पांच महीने काल-कोठरी । दूसरी धारा होगी, पन्द्रह से पचास तक के पुरुष घर से बाहर न निकलने पावें ; अगर कोई निकले, तो दस साल कारावास और दस महीने कालकोठरी । बोलो, मजूर है ?

कानूनी--( गम्भीर होकर ) असम्भव, तुम प्रकृति को पलट देना चाहती हो। कोई पुरुष घर में कैदी बनकर रहना स्वीकार न करेगा।

मिसेज़--वह करेगा और उसका बाप करेगा । पुलिस डडे के ज़ोर से करायेगी। न करेगा, तो चक्की पीसनी पड़ेगी। करेगा कैसे नहीं ? अपनी स्त्री को घर की मुर्गी समझना, और दूसरी स्त्रियों के पीछे दौड़ना क्या खालाजी का घर है ? तुम अभी इस कानून को अस्वाभाविक समझते हो । मत धबड़ाओ, स्त्रियो का अधिकार होने दो। यह पहला कानून न बन जाय, तो कहना, कोई कहता था। स्त्री एक-एक पैसे के लिए तरसे, और आप गुलछर्रे उड़ायें। दिल्लगी है । आधी आमदनी स्त्री को दे देनी पड़ेगी, जिसका उससे कोई हिसाब न पूछा जा सकेगा।

कानूनी--तुम मानव-समाज को मिट्टी का खिलौना समझती हो।

मिसेज़--कदापि नहीं । मैं यही समझती हूँ, कि कानून सब कुछ कर सकता है। मनुष्य का स्वभाव भी बदल सकता है।

कानूनी-कानून यह नहीं कर सकता ।

मिसेज़— कर सकता है।