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खुदाई फौजदार

खां साहब ने खिड़की से बाहर हाथ निकाला और तीन रुपये जमीन पर फेंक दिये । मोटर की चाल तेज हो गई।

सेठजी सिर पकडकर बैठ गये और विक्षिप्त नेत्रों से मोटरकार को देखा, जैसे कोई शव स्वर्गारोही प्राण को देखे । उनके जीवन का स्वप्न उड़ा चला जा रहा था ।




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