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मानसरोवर



एक चुटकी मिलती है, किसी को पूरा थाल । कोई क्यों किसी से जले ? अगर किसी पर तुम्हारी विशेष कृपा है, तो मैं उसे भाग्यशाली समझकर उसका आदर करूंँगा। जलूंँ क्यों?

माधुरी ने स्नेह-कातर स्वर में कहा-जी नहीं, आप कल से न आया कीजिए।'

दयाकृष्ण मुसकिराकर बोला-तुम मुझे यहाँ आने से नहीं रोक सकतीं। भिक्षुक को तुम दुत्कार सकती हो, द्वार पर आने से नहीं रोक सकती।

माधरी स्नेह की आँखों से उसे देखने लगी, फिर बोली-क्या सभी आदमी तुम्ही जैसे निष्कपट हैं ।

'तो फिर मैं क्या करूँ ?'

'यहाँ न आया करो।'

'यह मेरे बस की बात नहीं।'

माधुरी एक क्षण तक विचार करके बोली-एक बात कहूँ, मानोगे ? चलो, हम- तुम किसी दूसरे नगर की राह लें।

'केवल इसलिए कि कुछ लोग मुझसे खार खाते हैं ?'

'खार नहीं खाते, तुम्हारी जान के गाहक है।'

' दयाकृष्ण उसी अविचलित भाव से बोला—जिस दिन प्रेम का यह पुरस्कार मिलेगा, वह मेरे जीवन का नया दिन होगा माधुरी, इससे अच्छी मृत्यु और क्या हो सकती है । तब मैं तुमसे पृथक् न रहकर तुम्हारे मन में, तुम्हारी स्मृति में रहूँगा ।

माधुरी ने कोमल हाथ से उसके गाल पर थपकी दी। उसकी आँखें भर आई थीं। इन शब्दों में जो प्यार भरा हुआ था, वह जैसे पिचकारी की धार की तरह उसके हृदय मे समा गया । ऐसी विकल वेदना ! ऐसा नशा ! इसे वह क्या कहे ।

उसने करुण स्वर मे कहा-ऐसी बातें न किया करो कृष्ण, नहीं मैं सच कहती हूँ, एक दिन जहर खाकर तुम्हारे चरणों पर सो जाऊँगी। तुम्हारे इन शब्दों में न जाने क्या जादू था कि मैं जैसे फुँक उठी । अब आप खुदा के लिए यहाँ न आया कीजिए, नहीं देख लेना, मैं एक दिन प्राण दे दूंँगी। तुम क्या जानो, हत्यारा सिंगार किस बुरी तरह तुम्हारे पीछे पड़ा हुआ है। मैं उसके शोहदों की खुशामद करते-करते हार गई। कितना कहती हूँ, दयाकृष्ण से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, उसके सामने तुम्हारी कितनी निन्दा करती हूँ, कितना कोसती हूँ; लेकिन उस निर्दयी को मुझ पर‌