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मानसरोवर


पर आवाजें कसे जाते हैं, फवतियाँ चुस्त की जाती हैं । जो उसके पुराने प्रेमी थे, वे उसे जलाने और कुढ़ाने का प्रयास भी करते हैं , पर वह प्रसाद के पास आते ही सब कुछ भूल जाती है। प्रसाद ने उस पर पूरा आधिपत्य पा लिया है, और उसे इसका ज्ञान है । पद्मा को उसने बारीक आँखो से पढ़ा है और उसका आसन अच्छी तरह पा गया है।

मगर जैसे राजनीति के क्षेत्र में अधिकार दुरुपयोगी की ओर जाता है, उसी तरह प्रेम के क्षेत्र मे भी वह दुरुपयोग की ओर ही जाता है, और जो कमजोर है, उसे तावान देना पड़ता है । आत्माभिमानिनी पद्मा अब प्रसाद की लौंडी थी। और प्रसाद उसकी दुर्बलता का फायदा उठाने से क्यो चूकता। उसने कोल की पतली नोक चुभा ली थी और बड़ी कुशलता से उत्तरोत्तर उसे अन्दर ठोकता जाता था। यहांँ तक कि उसने रात को देर मे घर आना शुरू किया। पद्मा को अपने साथ न ले जाता, उससे बहाना करता, मेरे सिर में दर्द है, और जब पमा घूमने चली जाती, तो अपनी कार निकाल लेता और उड़ जाता। दो साल गुजर गये थे, और पन्ना को गर्भ था। वह स्थूल भी हो चली थी। उसके रूप मे पहले की-सी नवीनता और मादकता न रह गई थी। वह घर की मुर्गी थी, साग बरोबर ।

एक दिन इसी तरह पद्मा लौटकर आई, तो प्रसाद गायब थे। वह झुंँझला उठी। इधर कई दिन से वह प्रसाद का रंग बदला हुआ देख रही थी। आज उसने कुछ स्पष्ट बात कहने का साहस बटोरा। दस बज गये, ग्यारह बज गये, बारह बज गये, पद्मा उसके इन्तजार मे बैठी थी । भोजन ठण्डा हो गया, नौकर-चाकर सो गये। वह बार-बार उठती, फाटक पर जाकर नजर दौड़ाती। बारह-एक बजे के करीब प्रसाद घर आये।

पद्मा ने साहस तो बहुत बटोरा था , पर प्रसाद के सामने जाते ही उसे अपनी कमज़ोरी मालूम हुई। फिर भी उसने ज़रा कड़े स्वर में पूछा-आज आप इतनी रात तक कहाँ थे ? कुछ खबर है कितनी रात गई ?

प्रसाद को वह इस वक्त असुन्दरता की मूर्ति-सी लगी। वह एक विद्यालय की छात्रा के साथ सिनेमा देखने गया था। बोला-तुमको आराम से सो जाना चाहिए था। तुम जिस दशा मे हो, उसमे तुम्हे जहाँ तक हो सके, आराम से रहना चाहिए।