हम जानते हैं कि सूर्य सब के लिए प्रकाशित होता है और जितनी उष्णता और ज्योति की हमें ज़रूरत है, हम उससे पा सकते हैं। हमें इस बात का स्वप्न में भी विस्मय नहीं हुआ कि वायु जिसमें कि हम स्वांस लेते हैं, कहां से आती है। उसके बिना हम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते। जिस भोजन और जल की हमें आवश्यकता होती है उस पर भी कुछ विचार नहीं करते हैं। कैसा आनन्द हो यदि हम जान जावें कि केवल सब हवा ही हमारी नहीं है जिसकी हमको आवश्यकता है; यह धूप ही हमारी नहीं है और यह अन्न जल भी हमारा ही है किंतु इतना ही और इसी प्रकार हर एक लाभदायक कार्यकारी वस्तु भी हमारी है।
जिस किसी की हमें इच्छा है और जिस वस्तु का भी हमारा मन इच्छा करता है, जो कुछ भी भलाई हम हमारे साथ चाहते हैं, जिस किसी भी पद पर हम पहुंचना चाहते हैं वह सब हमारा है। अर्थात् मेरा भी और आपका भी। और यदि हम विचार पूर्वक रहें, सचेत होकर रहें; जोश के साथ रहें और दृढ़ता से रहें तो इन बातों का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि किसी ने कहा है कि, "जाको जापर सत्य सनेहू, सो तिहि मिलत न कछु सन्देहू"।
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