पृष्ठ:मानसिक शक्ति.djvu/२६

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५.––बाह्यक्षेत्र पर विचार का प्रभाव।

ह बात केवल मानी हुई है कि जीवन के सुख दुःख पर बाह्य क्षेत्र का बहुत भारी प्रभाव पड़ता है। इसके समझने के केवल दो मार्ग हैं। पहला तो यह कि कुछ व्यक्ति अपने को और दूसरों को बाह्य क्षेत्र का शिकार समझते हैं। जब वे अपने चारों तरफ़ दृष्टिपात करते हैं तो उन्हें निर्धनता, अपवित्रता और कुत्सित मकानात ही दिखलाई देते हैं और बहुत से मनुष्य अपने को शराब, तम्बाकू, बुरी संगति आदि में नष्ट करते हुए नज़र आते हैं। लोग इनकी बुरे स्थानों में रहते हुए पाते हैं इस लिए इस बात को वे जल्दी ही कहने लगते हैं कि इनके बिगड़ने का कारण बाह्य क्षेत्र है। कुछ समय हुआ होगा जब कि एक दिन लेखक ने किसी को यह कहते हुए सुना था कि ऐसी अवस्था में मनुष्य कैसे अच्छी तरह रह सकता है। इन गलियों को देखो जहां पर कि उसका निवास-स्थान है, इन आदमियों को देखो जिनकी उससे संगत है। उस घर का भी मुलाहिजा करो जिसमें वह रहता है। बात यह है कि बाह्य क्षेत्र पर

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