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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्रबंधु-विनोद और उदाहरणों की भी बहुतायत रखी जायगी । कुछ रसिकजन ने यह उचित मत प्रकट किया था कि एक-ही-एक विषय पर भिन्नभिन्न समयों के कवियों की रचनाएँ लिखी जायँ, तो विशेष श्रानंद मिले । हमें खेद है, इस ग्रंथ में उनकी इस इच्छा को पूरी करने का सौभाग्य न मिला । यह इतिहास-संबंधी ग्रंथ है, सो इसमें ऐसा उदाहरण-बाहुल्य नहीं हो सकता, जो इतिहास से विशेष संबंध न रखता हो । यदि अवकाश मिला, तो हम एक ऐसा पृथक् प्रय बनाने का प्रयख करेंगे। ___ अब यह "मिश्रबंधु-दिनोद" हम सहृदय पाठकों के चरणों में सादर प्रेषित करके श्राशा करते हैं कि वे इसे अपनावेंगे और सदैव इसी भाँति अपनी अमूल्य सम्मतियों से हम लोगों को कृतार्थ करते रहेंगे। स्थान-- लखनऊ, विनीत--- - संवत् १९६६