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मिश्रबंधु-विनोद

इन्होंने भरतपूर के महाराजकुमार सूरजमल का यश उत्कृष्ट कविता में गाया । इन्होंने ब्रजभाषा में कविता की, परंतु अन्य कई भाषाओं का भी यत्र-तत्र व्यवहार किया । इनकी रचना परम गंभीर और ओजस्विनी है । इन्होंने १८१० के पीछे कविता की । देवीदत्त ने वैतालपच्चीसी बनाई । सहजोबाई (१८१५) ने भगवद् भक्ति अच्छी कही है। सुंदरि कुँवरि की भी कविता रसवती है। मनबोध झा (१८२०) बिहार के एक अच्छे नाटककार थे । अक्षर अनन्य (१८२०) भारी धर्मप्रचारक हो गए हैं। बख्स़ी हंसराज(१८२०) पन्नावाले ने 'सनेहसागर' में बढ़ी सरस और लुभावनी कविता में कृष्णकथा कही । बैरीसाज (१८२५) अलंकारों के एक भारी आचार्य समझे जाते हैं। इन्होंने प्रायः दोहों में ही रचना की है, पर वह सर्वथा प्रशंसनीय है । किशोर (१८२५) ने नायिका-भेद और षट्ऋतु की प्रशंसनीय कविता की। इनकी भाषा में मिलित वर्ण कम है और अनुप्रास का इन्होंने विशेष ध्यान रक्खा । रतन कवि (१८२६) अलंकारों के आचार्य हैं। इनका रचना-चमत्कार बहुत ऊँचे दरजे का है । ब्रजवासीदास ने मजविलास-नामक परम प्रसिद्ध ग्रंथ बनाया । रामायण के बाद यही बहुत पढ़ा जाता है, यद्यपि इसकी कविता साधारण है । शिवनाथ ने नायिका-भेद वर्णन किया, जिसमें सानुप्रास कविता है। संवत् १८२८ से गोकुलनाथ, गोपीनाथ और मधिदेव महाभारत का प्रसिद्ध छंदोबद्ध उल्था करने लगे, जो संवत् १८८५ के लगभग समाप्त हुआ। यह बड़ा भारी ग्रंथ है और इससे भाषा भंडार के कथा विभाग की बहुत अच्छी पूर्ति हुई है। यह ग्रंथ बड़ा ही रोचक है । इन तीनों कवियों ने अपनी रचना-शैली इसमें बिलकुल मिला दी है । ये कवि इस ग्रंथ के कारण बड़े धन्यवाद के योग्य है । गोकुलनाथ ने अन्य विषयों के भी कई सुंदर ग्रंथ बनाए हैं । मनीराम मिश्र (१८२९) पिंगल के बहुत बड़े आचार्य हैं।