पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१८७

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संक्षिप्त इतिहास-अकरछ । ‘इन्छ अनीम त कुन्हई ॐ अझ दिया। दुर्थना : अड़े में अभ्य दुन ऊ = जे अब्द्ध ॐ ॐ झझ म दुलहू ने विदित इल्लु और टोडरमलु के ह ने द्धिऋड़ा हुइँति २८ ! . इन्द छन् । र ६६३ ।। इ इ इ स सुन ! अहो, डि , श्रम, ३ इन्द्र द अ६ ग* से हम्म . ६ कुरैश, बिछु, रि , ऊ : स्वरूई दृष्टत कर दिखाया । नः ।। | जमे । अन् १६८० ।। के बाद दौड़गढ़ ॐ ॐ ॐद हुआ है जीन ६ बाट क्री किंवाच्च होंदी में अन्दर तरि की है। गोरे झी आचरत आर्चे में इन सुनकर अयचे बंद की पढ़: स्वा मैं लैंअर' शहाकडे हुई छेड़े सिर में आ ॐ ? ६ ले हुये । इल म रत्न पहन बाबा को कुत्ता हैं मर्सका काल हैं । स्त्र पठनों मैं सरदार हैं अबेमें उ ॐ चंदूम रहार है असर बी है । पूर्वलकृत हिंदी ( संवदं ३७६० के दास अहा! राजधिराज, इजलाशमान, चतुर्दा शुन विराज, वेद विधि विधा मामग्री सन्नी, कुड़ वेद, देकदेव देवकीनंदन, अदुदैव, यशोदानंदद, इथलंद, कंसादिनिकंदन, औसा- अलंका, अंदर अय-अथ ! सुरति मिश्च । संवत् १६५७ } .. सौ फूल मुद्दा अरु बैदा भय छ देऊ अझ बढ़ें, है । ३ ॐ कुसुम, दिक्ष पर पैर घरे अग्र हैं । दिप्रिय हो टो: } भिखारीदासजी १ संबंद १७८६) के सिट

धन पर हैं भूखंड बुद्धिबंत ६ तु है ! और युदाबस्था हुए ते

नाहीं चतुर हैं भाते हैं दवा ॐ च हैं. इदेश शब्द लढा