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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद ( ३ ) पूर्व माध्यामिक हिंदी ( १४३५-१५, ६० ) विद्यापति ठकुर ( १४४५) सरस्व वसंत समय मल पाओलि दछिन पवन बहु धीरे । सपनडु रूप बचन यक भाषिय मुस्ल सेंदुर करु चीरे । इति देखिल पथ नारारि सजनी गरि सुबुधि यानि । कनकलता-सस सुंदरि सजनी विह, निरावल अनि । कत सुख सार पाल तुद तीरे ; इँडइत निकट नयन बहू नरें । कर ओरि बिनम, बिमल तरंगे ! पुन दरसन हो पुनमति गंगे । महात्मा कबीरदासजी ( १३५) जल थल पृथ्वी गगन मैं दोहर भीतर एक ;. | पूरण ब्रह्म कबीर हैं अदगत पुरुष अलैख । गला काटि बिसमिल करै तें काफर ने बुझे ।। | औरन को काफर कहैं अपना कुफर न सूझ । खोका अति का भरा हैं । ॐ अशी तन तजै कबीरा रामै छैन निहोरा, ३ । । तब हम वैसे अड़ हम ऐसे यही जनम का स्वाहा । ज्य जल में जल पैसन निकले हैं दुरि मिला औलाहा ।।। राम भगति पर जाको हित चित तो अचरज काहा । गुरू प्रताप साधु संगति अब जीतें जाति ओलाहा...। कुहत कवीर सुनौ रे संत भरम परौ अनि कोई । । जस का तस माही कसर हृदय राम्र में होई । .. | . नामदेव ( १४८० ). .. अभि अंतर काला रहे बाहेर करै उजअस । । .. नाम है हरि भगति बिनु निहनै नरक क्विास है।