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मिश्रबंधु-विनोंद

मिर्चधु-विनोद दृष्ट्र सह त्रिपनों दिक्षार ; इत्र मास दिन दिन बार । मन माहिं सुमिच्यो दिन । दिद दुसरा हे कियो अबीत । हि कथा ॐ को छेव ; हम तुम जपे नरा देव ।। बास-{ } मुनिसुंदर बैन । | ग्रंथ-शुनरसंरास । । इलाकाद्ध-१४५५। श्रीस्वामी ६ ३५) रामानंदर्जी एक प्रसिद्ध वैष्ण३ मत संस्था- एक संदर् १४५६ के लगभग हुए। मैं महाराज सिद्ध प्रोगी । हुए हैं। महात्मा केबांइदास इन्हीं के शिष्य थे और गोस्वामी सुलसीदास इन्हीं का | रामानंदी ) मत मानते थे। रामानंद संप्रदाय के हज़ारों साधु अड़ तक हैं। इन महाराज ने भाप के कुछ पद भी बना आर इसीलिय चियों में भी इनकी या हुई हैं। इनकः भई-प्रगाढ़ता सुवं काव्यप्रेस के कारस्ह इन पंथियों द्वारा हिंदी का बड़ा उपकार हुअा हैं। वल्लभ महाप्रभु के पति थे महात्माजी भी हिंदी के बड़े उपक थे । आप महमा . रापदाद के शिष्य थे, जिनके गुरु हरिनंद थे । हरिनंदजी प्रसिद्ध अहरूमा रामानुजाचार्य के शिष्य देवाचार्य के चेले थे। महात्मा रामा- बुद्धाचार्य का समय ११५० संवत् माना ज्ञाता है। बाबू राधाकृष्ट- दास ने सर-स्तोत्र और रामानंदीय वेदांत-भीमक इनके दो मॅथे। लिङ्कर उनके विषय में संदेह में प्रकट किया है । च० बैं पत्र में रामरक्ष्या और ज्ञानतिलकामड़ दो ग्रंथ इनको मिलें {२६ कैदेव अधित्व / मय संक्त् १४५३ हैं। ये महाशय श्रित अछि विद्या के समकालीन थे । इनका कोई प्रश्न हमारे देहों में भी यह घर इनकी कविता सद्ध है।