पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२७५

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प्रौद्ध माध्यमिक की बाललीला झा वन इन्होंने स्तर-पूर्वक और ऐसा विशद झा कि जिसको देखकर बन्न प्रसन्न हो जाता है । मात्रजचोरी, झगलबंधन, सहला, अथुरागमन श्री उद्धथ-संदाद आदि इनके एर और प्रभाव-चूर्ण बर्बर हैं, जिनके देखने से इनकी कविता का महत्व पाठक के विदित होता हैं। इनकी मथुरागमन बड़ा ही इश्यद्रावक हैं ? वन-धूर्णता, माहिल्य-रब, बीबीन, रंग का अिशा वे स्वभाव, तथा भाव-गरिमा ॐ सूरदास में अच्छी प्रहार है। भ¥र्भ के साथ इन्हें ऊँचे चिंबा, प्रकृतिभरीक्षा गुवं मनद ल-कुशावलकर ॐ अनुभदे के बमलाया है। अपने चरित्र-चिंत्र में अच्छी सफलदीप्रत की हैं। इनके वन- धोकन में अनुष्य में उच्च भाव का संचार हो । सूरदासजी के बस कई दिग्दर्शन मात्र यहाँ कराया गया है। जिन पाठकों को विस्तारपूर्वक इनर्क समालोचना पड़ली अभीष्ट हो, वे हमारा हिंदी- नवरत्न देखने की कृपा करें । तु० औं रि० में इनके जवत तथा सूर- पूर-नामक ग्रंथ में ले हैं ।। उदाहर-- - अब में नायः अहुत कुल ? झाम, ब्रों को पहिरि बोलना कंठ विषय झी मालं । महामह के नूपुर बाज़ढ़ निंदा सबढ़ रसाल ।

भरम अरु सन भयो पच चुत कुसंमति चाल ।

वृक्षा मार्च करत घट भीतर माला बिधि है ज्ञा १ . . सायर से कट कैंटा बाँधे लोभ मिलक ३. भाले । कोकि छला काछि दिखाई जल थल सुधि नहिं काल । . सूरदास की सई अधिकार , दूरः क्व बँदञ्चाल । | अब कै राल ढेडु पाघात ; इस क्रिस हैं दुसह दवाईन उडी है यहि ऋद्ध है । .