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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रलंधु-विनोद अ : ६०६ के उदभरा था 1 कुंभनदासजी की कथा ८४ वैष्य की बात में शामिल हैं। वे महाआड. गौरक्षा ब्राह्म' थे । इनके सन्द पुत्र में स्वतुर्भुजदाल भी एक थे । इनके पौत्र 'धवास भी अच्छे के थे । | संतन का सिंकरी सन काम । |: आवत जन पछि टूट विसरि यात्री हरि-नाम है। ". : लिजक्ये मुक्य देखे दुस्ख इज्जत तिनको क्रश्चेिं परी सलाम ।। ओमनदास लाल गिरिधर बिंन और सुबै कम । .. | तुम ही दुहि ज्ञानात मैया । । चलिर कुँवर रसिक सन मोहन क्लयों निहारे दैया । तुमहि जानि और कनक दोहिनी वर ले पठई या } निकटके हैं यहू खस्कि इमारोबार हुँ अंबड । देखियक्ष श्रम सुदेस रिकई चित बुइँक्यों सुंदरैया ; कुँभन्दास प्रभु मनि जई रात बिगर गयरधन रैया । | १ ६ ६ } चतुर्भुजदास . हे महाशय स्वामी विठ्ठलन्थी के शिष्य श्री कुंभनदास के छ थे। इनका छन १५२ वैशु झाले में है। एक चतः में मार-एस का प्राधान्य हैं। इनके भी माना अष्टछाप ॐ थी। इन इन्हें हास्य श्रे में कुलगे ।इनकी इल्ल अंरक थी । म्हाने मधुम्ह ॐ त्रै कथा एवं भक्किअता-नरक अंथ भी बनाए हैं । र समय १६२५ के लगभग था । इक्के ४६ पद एवं समैका ॐ भू-सक ६६ पृष्ठों का एक अंश हमने देखा हैं ।। .: ऋक एक अंथ दशकश-क्रामक और देखने में आया है, ञ्चिल संवत् १५६० विदा है। ज्ञान पड़ता है कि यह स्म्य अशुद्ध हैं, क्योंकि वे यहां स्वामी विनाश के शिष्य था कुंभमदास