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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंध-विनोद | 'माधुर' में एक लेख लिखकर याज्ञिय ने इनके संबंध में । बहुत-सी नई जानने योग्य बातों को प्रकट किया है। उनके पास उनके बहुत-से छंद भी संगृहीत हैं तथैव इनके बार-शोभा वर्णन सङ् एक नर ग्रंथ का भी पता चला है । । | बरवै नायिका-भेट में ६४ छंद हैं। इसमें कवि ने लक्षण न देकर उदाहरण-मात्र दिए हैं। यह अंथ पूर्वी भाषा में हैं, और इसकी कविता परम् प्रशंसनीय है। रहीम की चिता मैं सचमुच । अलौकिक आनंद आता हैं । इस ग्रंथ में प्रायः सभी दरवै मनोहर हैं, पर्दे तु उदाहरणार्थ केवल तीन यहाँ पर लिखते हैं। ख्रीन भलिन विष भैया औगुल तीन । | पिय ऋह चंद-बुनियाँ अहि तिहीन । दीछि अखि अद्ध अँचवनि तरुनि सुदाँ । धरि खसय घडू लला मुरि 'मुसक्रानि । .. शाखेम अस मनु मिलय असे पृय पानि । । इंसिनि । भई सवतिया उइ बिद्धयानि । । रहीम की काव्य-श्रौढता उनकी सतसई पर विशेषतया अव- जंबित है। इस ग्रंथ में किसी नियम पर न चल कर रहीम ने स्वछंदता-पूर्व अपने प्रिय विषयों पर रचना की है ; सुतरां यह प्रेथ बड़ा ही उत्तम और रोचक बना है। हमारे पास के कैवल २ १२ दो में ही रहीम के विचार एवं उनकी आत्मीयता कृट-दृट- कर भरी है। इनका प्रत्य के दोहा एक अपृर्द निंद देता है। ॐ महाशय वास्तव में महापुरुष थे और इदका महत्त्व इनके छंदों से भी थाँति प्रकट होता है। इनके विचारों को कुछ उल्लेख । चें किया जाता है---" . इं इन से अधिक प्रिय था .. ." रहिमन सोहि ने सोहथि, अमी वियवै मन मिन ।