पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३८९

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द मध्यमिअर ३१३ वर---इन्होंने स्वामी बनचंद्र, श्रीगोस्वामी हिलहरिकेश के पुत्र, की आज्ञा है सारसंग्रह-नामक पुस्तक संगृहीत की श्री; अतः इनका कविता-समय १६६० कै हरभरा निश्चय किंया गया । इस पुस्तक में १५० कवियों की दिशा सही है। यह पुस्तक हमारे पुस्तकालय में प्रस्तुत है। | ( १८५} मुबारक चैयद सुदारक अली बिलग्राम का जन्म-संवत् ३ ६४० में हुअा।। महाशय अरबी, फ़ारसी तथा संस्कृत के उड़े विद्वान् और अर . अच्छे दि ३। सुना झाला है कि इन्होने ३६ अंगों पर - हे बनाए जिनमें से तिलशतक व अक्षरह प्रकाशित हो चुके और हमारे पुस्तकालय में मौजूद हैं। इनके अलावा और कोई इनको देखने में नहीं आया, परंतु स्कुट छंद बहुद देख पढ़ें ३ इनकी कविता कारस और मनमोहनी है। हम इन पद्माकर } अशी में समझते हैं। अपने रूपक, उॐ आदि अच्छी उदाहर--- म्ही अाँक्री चितौलि चुभी झुकि, काल्हि ही झाँकी है, म्याद्धि दानि । ४ है नौवी-सी चोंढी- कोरनि छै फिर्दै उ, चिन जा छाने । ई जाति निहारे मुबारक, ये सह छारे ऋछिन् । ६ ॐ जर ३ री गरिनि, आँगुरी तेरी कशी झटाछन ।। १ ।। अाजद नगारे मेंब ताल देत नदी नारे, शुरन झाँझ भेरी बिहँस क्लाई हैं। व नाक्झारी किंल अजापानी ।ौन बान्धारी चाटीं चातक अगाई हैं। । मनिमाल-जुगुर्दू मुझरङ, तिमिर थR, चौमुख चिराङ चारु चला चलाई है।