पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४३५

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सुकवि-माधुरी-माला का द्वितीय पुष्प किया-थावली [ संपादक-हिंदी-साहित्य के सुप्रसिद्ध विद्वान् और काव्य-मर्मज्ञ १० कृष्णबिहारी मित्र ... बी० ए०, एलू-० वी० | हिंदी-संसार में एक-से-एक बंडूकर, अपूर्व र धुरंधर : कवि हो गए हैं । महाकवि मतिराम का स्थान उनमें किसी से कम नहीं है. यह भी हिंद के वरतों में एक हैं। काव्य-प्रेमियों की इनकी भाव-पूर्ण, सुंदर और कमनीय

कविताओं का रसास्वादन करने की लालसा अभी तक यू

नहीं हुई थी। वरण, एक तो इनके मान्य श्रृं के सुंदर और शुद्ध सेस्कुएं मिलते ही नहीं थे, और दुसरे अर्थ है उनको सतसई का किसी को देता है नहीं था। बहुत स्वज और इ-व्यय करने पर हमें इनकी सतसई भी मिल गई । मिश्रजा से संपादित करने वाज, ललित-लावा और मतिराम-मृतसई का तिस-ग्रंथाली के नाम से प्रका- .:: शितं किया है। हिंदी-संसार में यह एक अद्वितीय ग्रंथ है।