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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोंद नाम ‘अलंकार’ लिए हुए इस कारण से रखे गए हैं कि इस समय के कबियो नै सालं कार भाषा लिखने का अधिक प्रयत्न किया । अज्ञात- प्रण इतिहास-ग्रंथों में होता ही नहीं और हमारे यहाँ भी न होना चाहिए था, परंतु हिंदी में चरित्र-वर्णन की कमी से बहुतेरे जैखों का पता नहीं लगता । यदि केवल इतिहास-ग्रंथ लुिखले होते, तो हम इस प्रकरण में न लिखते, परंतु हमारा विचार थासाध्य कुल प्राचीन कवियों के नाम लिखने का है ; इसलिये अलि समयवाले रचयिता भी कथन कर दिया गया। आशा है कि मंत्र के द्वितीय सत्रा के समय तक स्तोगी की कृपा से यह प्रकरण अकार में बहुत संकुचित हो जायगा । परिवर्तनप्रकरण में तीन अध्यायों द्वारा उस समय का हर कहा गया है, अत्र कि यौरपथ संघर्ष से उत्पन्न नवीन विचार हिंदी में स्थान पाने का प्रयत्न कर रहे थे । वर्तमान प्रकरण में पाँथ अध्याय हैं । उपर्युक्ल नूतन विचारों को इस समय अच्छी प्रभाव पड़ रहा है । इस ग्रंथ में अनेक अध्याय ३ अकार बहुत बड़े हो गए हैं । इसकी मुख्य कारण हिंदी में कवियों की अधिकता है । हमने बड़े अभ्यायों में प्रायः वीस वर्ष से अधिक समय नहीं लिया है, परंतु फिर भी उनके आकारों की वृद्धि क्रिस अध्याय के उचित फैलाव से बहुत आगे निकल गई । बहुत स्थानों पर बीस वर्ष से भी कम समय का कथन एक अध्याय में करना हमें उचित नहीं आन पड़ा। अशा हैं कि अश्व-विस्तार के बिचार से सहृदय पाठकगण हमारे अध्ययविस्तार के दौए को क्षमा करेंगे। . विविध समय और उनकी दशा हिंदी-साहित्य के उत्पन्न करने का यश ब्रह्मभट्ट कवियों को प्राप्त हैं। सबसे प्रथम इन्हीं महाशयों ने नृपयशवर्णन के व्याज से हमारे साहित्य की अंगपुष्टि की, यही क्यों उसे जन्म ही दिया, क्योंकि