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मिश्रबंधु-विनोंद

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२६ मिश्रबंधु-विनोंद विचार कर लेना चाहिए । विद्वान् को यह कभी शोभा नहीं देता कि विना विचार किए इसरों के विचारों को अपने मत कै स्वरूप में लिख देवें । यदि हिंदी के किसी अच्छे ग्रंथ से उसले अधिक प्रसिद्ध भी कोई अँगरेज़ी का झारसी का अंथ मिलाया जाय और अड़ औड़ा जाय कि काव्य-संबंधी उदए-दो किसमें विशेष हैं, तो विदित हो कि हिंदी में कैसा जाज्वल्यमान साहित्य-अभी वर्तमान है। परंतु यदि कोई और ही की सम्सतियों को अपने विचार समूझकर बिना मिलान किए ही उचित सम्मतियों को हिंदी में केवल अनपयोगी विक्षों के कारण अग्राह्य, अल्यूक्लि-पल एवं शिथिल समझे, हैं उससे कोई क्या कह सकता है ? अस्तु ।। | श्रेणी-विभाग के कारण । हमारी सन्मति से विनींद में कथित साधारण अॅग्री तळ के कविग्र अपेक्षाकृत दृष्टि से कुछ-कुछ उत्कृष्ट हैं। इस कारण प्रत्येक कवि की समुचित प्रशंसा करने में व-संख्या-बाहूल्य के कारण ग्रंथ बहुत बढ़ जाता है फिर कई पदार्थों के प्रशंसनीय-मात्र कहने से उनमें अपेक्षाकृत प्रशंसा की मात्रा के भेद विना वर्णन बढ़ाए समझ में नहीं आ सकते । श्रेणी-दिभ्याग स्थिर करने से यह भेद बहुत शम्र दो ही शब्दों द्वारा प्रकट हो जाते हैं । विना श्रेण-विभाग के वर्णन बढ़ाने से भी हर बार पूर्ण अंतर समझ में आ जाना कठिन है। सरोजकार एवं अन्य भाषा के इतिहासकारों ने श्रेणी-विभाग स्थिर क्लिए विना ही कवियों की प्रशंसा की है। इन प्रशंस्थाओं से अधिकांश देशों में कृत्रियों की अपेक्षाकृत गरिमा का भेद ज्ञात नहीं होती । इन्हीं कारणों से हमने किसी प्राचीन प्रमाण के अभाव में भी श्रेणी-दिभाई चलाने का साहस किया है। श्रेणियों में रखने के विचार में हमने केवल काव्य-प्रौढ़ता पर ध्यान दिया है और कवि के महात्मा या महाराज आदि होने के कुछ भी परवा नहीं