पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१००

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मिश्रम यिनैद । १ से १४२ सिघ सर के कर असति । न य किरघा । भुज भुजगेन मुजंगिनी भजति पनि भरि प्रश्न । यायेर आया सुनत ही सच सरशी तध भनार्दै। ६ नारि भृग जलन है अड़ि जात आरं गायें । अहमदनगर के थान विरयान ल* नयसैपनि ते बुमीन भयो , ते) प्यादेन से प्यादे परंतन में पघरत यसतर यारे ३खन्नर ारे दलहै ॥ मून मननु पर्ने मान घमसान भयो जान्यों में परत न अति फैन दल ते । सम वेप के तही सरजसिव है। घाँके वीर जाने कि देत मीर जाने चलनै । सुवन के ऊपर ही ठा दिबे के जाग तादि खरी किये जाय जारन के नैयरें। ज्ञान और मिसल गुसा गुसा घरि दर कन्द ने सलाम २ वचन चेले सियरे ।। भूपन भगत माघीः बल्लफन साप सा पातसाही के उडाय गपे जिते । तमक है साल मुख सिचा की दररित्र भयै स्यद मुख नारा सिपाई मुल पियरे ॥ धीर बड़े बड़े भीर पठान नरेश राजपूतन का दल भारी) भूपन जाये वहाँ सिवराज लिये हरि पैगज़ेब का गा ।