पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/९९

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पूलंकृत प्रकरण । संका मानि सुत अमीर दिली चार अब चंपति के नैद के नगारे घरात । घई और चाके चकत्ता के दल पर चा के प्रताप के पत्रके फइरत हैं । निकसत म्यान मथुर्म' प्रलेभानु कैसी फा” तम ताग से गयंदन के जाल हो । लागरा लपदि कंठ बेरिन के नागिन सी सद्गहि रिझ६ ६ ६ मुंडन के माल के । लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहुबकी फटी घसान करीं तेरी करनाल हैं । मतभट फट्क कटीले के फाटं कादि। कालिक सी झिझक फठेऊ ति फाछ की। घेद रानै चिदित गुरास राख्ने सार जुत राग नगि लै। प्रति रसमा मुफ़र हैं। हिन्दुन की घाटी रोटी रा है लिपदिन की धे में जानेव राचे माका सपो गर मैं ॥ मीडि राम्नै मुहाल मद्धि राम्चे बादसाह गैरी पति ने वरदान राजैी कर ३ । हिन्दुन की हद्द राखी नै थल सिमराज घेच रास्त्रे दैवल स्वभावै। घर में । कल करत कलिकाल मैं नहि नुरकन की काळे । काल करत तुफान के सिव सरला कराल ।