पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२२

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भिन्न-दिना। [सं० १७११ अक्षर का लक्ष घाम लीशा दग्नाइय। सपियन विर; जनाय ज्ञान भाया उसाइये ।। मुर में भृमा भृम माल में लाए हेरि बैंमा पम् । सपियन समेत छत्रसाल उर जुगल रूप जग जग जाग्यः ॥ नाम--(४३५) नेएसमूता घानिया (सघाल) जोधपुर। अन्ध-मारया फी यात । कविताका–१३२ । विवरण–तिहास, लॉकर्सया ३५46 1 आश्रयदाता महाराजा | असमंतसिंह। | (६ ३६) अन्ये अथवा अक्षर अनन्य ने शानयाध (१७ पृष्ठ }, सिद्धान्तवेध (१०९, छन्द), झानयाग (८६ छन्द), इर सम्बाद मापा और योगशास्बपदय नामक ग्रन्थ घनाये, जी हमने श्रपूर में देचे हैं। चेज़ में इन का जन्मकाल संवत् १७१० लिया है, अन्य जाँच से भी ठीक हुँचता है। इन का कविता-काल सं० १७३५ के लगभग समझना चाहिए ! ये हैं पर पृथ्वीराज के पद थे । ये जाति के फायध थे। इनकी कविता साधारणतया अच्छे देती। थी । इम इन फी साधारः थे यी मैं रमते हैं। इन्होंने विशेषता धर्म विपर्ये पर कविता की । आप दुतिया राज्यान्तर्गत सेहुँदा झाम के नियासी थे और महाराज्ञा दलपति राय दृतिया-नरेदा के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज के गुरु थे। एक बार पानरेश महाराजा छत्रसाल ने आप की दुलधा भेजा, परन्तु अप ऐसे निवृत्त मार्गस्य