पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१९२

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मिश्रबन्धुबाद। [सं० १९५५ विपर-इनका नाम सुजानचरित्र में सूदन कधि ने दिया है। नरम-(५७१) ति लेक। | मन्थकुट फाव्य ।। वधिता काल--१७ २४ के पूर्व ।। विवरगा–सुजनचरित्र में इनका नाम दिया हुआ है। नाम--(५१७३) नुत । चिंता काल-१७५४ के पूर्व । मंचर- सुझानचरित्र में इनका नाम है। नाम--(५५३) तेन । चिंता काल-१७५४ के पूर्ण । विवर-इनका नाम सूदन ३ लिया है। नाम-(५७३) दयावे ! कविता काल-१७५४ के पूर्व । प –सापार थ झ । सुदन ने सुज्ञानचन में इनका नाम कहा है। माम-(५०५) नाराय। करिना काल-१७५५ के इर्ष । विवरगा--सदन फर्षि में इनका नाम लिया है। नाम--(५७६) श्रीरधर । बबिता फाळ-१७५४ के पूर्ष । घव--सूदन कथं ने इनका नाम लिना हैं ।