पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२

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मिए । [१ १६E। तरंग के छन्द नभ्यर् ५, १३, १६ र ११ से विदित होती हैं, बर: ३॥ ६ कि तु भर पंचम शरंग मर में शशि पर पड़ता है। सेनापति की भक्ति, सूरदास र मु दसि की भक्ति में वायद पुः ही कम है । दरअर्स पर पर एन्य न उठ वरते है :- ही भाँति धाऊँ सेनापति से पाऊँ उन पर पदिऊँ सरधन तीन में। भसम चाॐ अटा सस में पढ़ाऊँ भाम पाही है। पट्टा दुहूरन छुन छ । सबै बिसरा उर खासे उरझर्क पर वन चैन घाऊँ तर भूधर नदीन के । मन घहिरा मन मनई रिझाऊँ दीन के कर गाऊँ गुन घाही परपीन के ! आप के निर्मल विचारों और पुनः जोधन का कुछ कुछ पत्रि- जय पंचम सरङ्ग के छन्द नै, १०, ११ पैर ४ से भी मिलता है। इनसे यह भी जान पता है कि आप के पाल सफेद हो गये थे चार अपस्पी साधी से अधिक षीत गई थी। कोई मनुष्य पचास घर्ष से ऊपर हुए बिना साधारणतः यद् कर्मी भद्दी इ सकता के मेरी यु माघी से अधि बीत गई है। इससे हमारा विचार है कि जिस समय यह य इन्हें नै समाप्त किया, उसी समय इनकी अयस्या प्रायः ६० यरस फी होगी। छम ने 83 से यह भी जान पता है कि ये महाशय बादशाही नौकर थे, क्योंकि उस छंद के बनाते समय इनके उससे अश्रद्धा दा चुकी थी। येषा -- :