पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२३

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नारदाप्त ] 'लंकृत प्रकरण । झुंज में हैं ६ कढ़त देन झनै दिये 8 ग्रेयि । अचकै अवकै कदत हो यई अर्क कर हाय । पाठक महाशय ! दैपिप इस कता से पैसा निर्वेद टपकता | है। प्रज्ञ में पहुंचने पर ये कैसे प्रसन्न हुए थे सो निन्न पद से झलफता है:--- इम। सवही नात सुधारी। फूपा करीं श्रीं कुज बिहारिने अरु श्री कुज बिहारी । राण्यो अपने वृन्दावन में जिई का रूप या । निच केलि आनन्द अखढित रसिक संग सुन्न कारी ॥ कलह फलेस न प्यायै यहि कां र चिश्च ते न्यारी । नगर दालदि जनम जिवायेा दतिहारी बलिहारी ।। १ । गैर साँघरे रसिक दाइ यह दाजै सुरस । फबई नागरी दास अत्र तज्ञे न जि फेा वास ॥ २॥ बार भी इनही फर्थिन में पान स्थान पर ग्रा फी प्रशंसा | मिलती हैं। पई भाद्र शु० ३ ० १८२१ फै। ये ६४ वर्ष ८ महीने की अवस्था में इस असार मसार को छील गैलेक्वाही हुए। | महात्मा नागदास ने सं० १७८६ से हैकर सं० १८१६ पर्यत अझ साहित्य स्रोत बहाया । इनकी कविता की प्याति इनो जनन-फाळ ही में विशेष रूप से हो गई थी और उसे पृन्दापनयासी ऋएस्य तथा वैसारयाग साधु महात्मा सभी पसंद करते थे। पफ वार येक्ष वृन्दावन में गये । जे लैंग ने जाना है राजा गढ़ आये हैं, तो कई साधु मदत्मिा इनके पास न गया,