पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३७

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पूर्वालंकृत प्रकरण । झान पानिधि माहि रली बटु शंग तरगति से उछ ।।। ता सुचि सारद गंग नदी प्रति में लुढी निज सास भरी ६॥ से कर फैतन्फी कनेर एक कई जाये। आम दूध गयि दुध अन्तर घनेर हैं । पी होत गरी १ स पर कंचन की। कहीं कम बानो फ कोयले की देर है। कद्द भान भारी कह मिया बिचारो कदी पूड का इशारा कहाँ मावस अँधेर हैं। पच्छ र पारखी निहारी नै नर्क करे। | जैन वैन और बेन इतनेही फेर हैं ॥ ( ६३२ } कुण् । में गशप कार कुठेत्पन्न मधुराचास माथुर ग्राह्मण थे। कहते हैं कि आप प्रसिद्ध कवि चि के पुत्र थे । अपि महाराजा सवाई सिहं नेपूर-नरेश के मन्त्री राजा आयो म के अधय हैं रहते थे और उन्हीं की प्राशी से इन्होंने बिंब दिहारोळाल की सरासई पर प्रति हे पक पक सुचैया या बनावारी कधी तथा मुमतया गद्य ब्रज भाषा में प्रति ईहे के कुछ गुण दैप पैर अर्थ

  • कहे हैं । फुया कवि ने अपने विषय में उप कपात का पहना

अलं समझा और अपनी रचना का समय नुक नहीं लिया। विहारी सतसई संपत् १७९१ में बनी थी और अयाई चैसिई ने संवत् १७५५ से सं० १७२९ तक राज्य किया था। ये मद्राय इन महाराजा साह्य हे दिपय पर्त्तमानकाल की क्रिया का प्रये