पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१३

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far'पद्। [१ः १८•• मा गी बलि ६मा जागी । ६ राग भैप वियागीं ॥ घर मन्त्र गण पप इटाङ । झाइ घाट दुईकापड ।। दायति भी दी रियानी । शाम 5ए यिपि मानी : मन दिाचन मै च दर दिगा यी चार। घन्द विपन दि गयउ संज्ञ र पी पार ।। जत्र द न घारि हुमारी। हज पर ईडग अस नारी । दामिने धर्म या अधिाई। उस दिन ई चिन छ । घदेव पपन लेट पर अनुगगे । सट ठिरानि अपन ६, मागे । परी घन पर रट सटारी । राप दिवस गा निनिधियारी । भादि परा दरसन कर बैग । इना यान धन असिन । It यद मुश यद्द तिल यद्द लटकारी । ये तै। फ६ % गिरा भिन्नारी । आ इ पनि वहा पाई । पार्दै तपो पर मुरझाई है भई मुरडा मुझ देखि सयाना । सटे परत मूत्र पर मुरझानी है एषः कद्दा छट से मुख सेभा । ति अधिक छपि मुझ सभा में एक कई लट जामिनि देई । राति जानि जागी मा लैाई ॥ एक कहा मुम तिल हट फारा। साल भैपर अ६ फुटपारी ॥ एव पदा मुस ससिहि सजाया ! छट आगी को मन एक कद्दा लट नागिन पारी । गरल से गिरा भिमरी है। झाचा में सघन धन्नानः जै जसे दूझा । दापति कई अगिम खुका है। कद्दा तपी अस फ६ अगे। गरवन व सुन्दर र त्यागे । । यदै मुले यद् विलयलट फारी। अन्त इ इ दिन सञ्चः १ ॥