पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७४

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गये।] उतरतगृत प्रकरण । (८६६) गद्य कवि । ये महाशय मलाये जिला हरदोई के कान्यकुब्ज झा धे। शिघसि हुसरोज में इनका नाम नहीं है । इन्होंने सैवद् १८१६, मैं दसली नानक भेन्थ बनाया । इसकी एक दस्तावित प्रति हमारे पुस्तकालय में वर्तमान है। इसमें इस पद गाय का धन है। यह समस्त ग्रन्थ घरदै छन्६ में कहा गया है। इसमें २५६ प हैं । गश फा और कई अन्य या छन्६ इमने नहीं देखा। इनकी गाना साधारण शेण में है। सिरधर मेरि किरीट पिछोरी पोत ।। मगढ़ कर नसि सिर श्यामल मति ॥ तून इति जतस्वि घन दुति घनक सुभाय । यह इस घरी बरसा घर पाय || (८७) मनबोध का । ये महाशय एक प्रसिद्ध नाटककार थे । इमफा मृत्यु सन् १८४५ में हु । दमका चिता-काल सं० १८० से समझना चाहिए । इन्छोंने हरिबंश नाटक नामक एफ भारी अंध मेशि भाषा में लिप्ता, जिसमें भी फूणच जी का अझ वन हैं। इस एरिया के अब इस अध्याय मात्र मिलचे हैं। मेथिछ लोग न्छ बड़े चाव से पढ़ते हैं 1 इनकी गधना मधुसूदनदास की श्रेणी में है।