पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७३

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६६६ भिमबन्धुचि । कॉम वन बळ धुव टैंपो पोज तामै आज धि लीज का जादा दगम ६ ॥ मैरी भान सजीवन राधा ( टेक ) ।। फय तुय चन सुधाघर दरसे माँ बैंपियन ए वाया इम टमकि लरकी यानि अव सामुद्दे मेरे । रस के वचन पियूर पेरिस कर मद पटी तेरे ॥ : रंग भइले संकेत मुगल कार टाळनि की सद्देली । अशी दी रहां तहँ तप्तपर बल द्वैम पर्दे ॥ मन मंजरी ३ कीन्ह किंकर अपनायडू किंन वै । सुदुर कुवर स्वामिनी या हिंय है। इसे सदैग में भाम-(८६५) जपजीवनदास चंदेल, केटचा शिला चार, बंकी। मन्थ१ यस अर्थ, ३ प्राप्त ३ मा पलय, ४ यानी (३५३ पद) । कश्तिाका–१८:४। वियर मै महाशय सत्यनामी पंथ के अाचार्य थे। अपने फाय भी शनि रस को किया है। इनकी गद्दी में इनके घेले पूमदार, जालीदास, दैपदास इसाथ अप मारमः । मैर कवि हुए हैं। इस रघना साधारन थे । ही है। इनका अन्तिम ग्रन्थ मनै छ में दैजा!