पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८६

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३६१ प्रवासीदास] इज़राबंकृता प्रकरण । । झापा की भाषा फ छमिये स। अपराधि ! जैवि तेहि विधि इरि गाइये फहत सकल श्रुति साध ॥ या में कठुक नुद्धि नई मैरी । डॉ युति सच है कैरी ॥ माते यह अति हात दिठाई ! करत बिष्णुपद की पाई ॥ में नई कवि न सुजान फाऊँ। कृष्ण विकास प्राति करैि गाऊँ ।। सा विचार के अवर्णन यी ! काव्याप गुमा मन नहि दोनै ।। | इस यूएस् प्रन्थ में इस कवि ने श्री कृष्णचन्द्र फी लीयों को विहारपूर्वक चर्गन किया है, परन्तु उद्धव खवाद के पीछे मूर की मतिं इन्होंने को कृष्ण के छात्र दिया है। सूरदास की भाँति जगादास भी ब्रजवाना यदा नन्दन पत्र मैपिंफापराम फ्ष्य के दास थे, अतः इन्दंने भी कृष्ण के हन्दी चरित्र के चर्णन किये हैं। - मै महाशय स्वामी तुलसीदास के मार्ग पर चले ६ पैर इन्होंने भी स्वामीजी की भाँति दीदा चापा, अचं कुछ अन्य एनी में अपना ग्रेन्थे घनाया है। इन्होंने मुरदास से कथा एवं भाई चार तुलसीदास से रीति एव भीपा लेकर प्रज्ञपिलास में इन दोनों मामा का सम्मेलन सा कर दिया है। मजविलास में जितना लीलामी में वर्णन दुध हैं घे सब ई विस्तार के हैं। इस फच ने युद्ध र वियाग के स्पष्ट रूप चे हैं। गीवन- धारा, प्ण का मयुएमन ६ उनका कुरघापड हाथी एवं म से पुद दे कितनीधी लोलाये हैं इसमें अच्छे वर्णन है। इस फर्षि की भाषा में भी तुलसीदास की भांति बसुया ।

  • प्रधान्य और प्रजभाषा का चहुत फम मेल है। गैखामी