पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८३१ मिश्यन्धुग्गैिः । [सं० १८ हि ६ । हुम गामापढी नै मायः ६६ भी नरकालीन घर्तमान था, पुरामा अादग्दर यदि इट नहीं दी है, परन्तु इसमें भी देउवा का नाम ना ६। इससे विदित देता है कि संवत् १८१५ तक ये महाशय प्रसिद्ध नहीं हुए थे। फिर पद्माण प्रादि की भांति येधा का अचाचीन का होना भी प्रसिद्ध नहीं है, अतः शिवसिद्दीकी संवत् प्रामाणिक ज्ञान पड़ता है। ज्ञान पढ़ता है कि चाम्रा ने लगमग सं० १८३० से १८६० तक करिना की। आगरा के पं० उदमी- दत्त ने हमें लिप्त भेजा कि वेघा के लिझै पफ पत्र नं १८४५ सं० दिया हुआ है। आपने सैज्ञाराम घार माज्ञीराम है। पापा के भाई, यदैव, मनसाराम और दालचन्द्र ६ पुष, टीकाराम के त्रि पार पीडाल व प्रपत्र टिग्न हैं, जिनका अभी मत देना प्राप पतलाते हैं । अाप दवे हैं कि पाधा वि फीरोजायाद जि० मार्ग पे रदने वाले थे। ये कपन यथार्थ ज्ञान पड़ते हैं। वैधात वैच'फ़नामा' हमारे पास है,जिउने ३५ पृष्ट और १०९, फुट छन्द है। इसमें थेाड़े से दें! चरबै वि में छोड़ कर दशैप सपनाक्षरी अथवा सयेय छय है। इस ग्रन्थ में वैध ने के सैयत् नहीं दिया है। इस समस्त ग्रन्थ में प्रेम के चोज़ और तत्त्व भरे पड़े हैं। जैसे मैस्वामी तुलसीदासजी प्रत्येक स्थान पर राम को देखते थे, वैसे ही पेशधा वा दर जग प्रेम देस पड़ता था। देा एक बयान में है। पर इनका प्रेम ईश्वरसम्बन्धी न द फर चनिनासम्बन्धी , परन्तु फिर भी यह फबि एश्या प्रेमदास था। प्रेम का ऐसा उत्ए और सच्चा यन परने में बहुत कम फर्भि मिर्च हुए हैं। घाघ की रचना इर जगह अत्यन्त सनीय और इन