पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५७

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E६ निश्चयादि । [म० १८॥ तिन्यः यि फी निरभ वा न तेषु ॥ अशर शिर्ड थेट जरि अनोप का। उत्रिन ६ पुत्र ६ नएनपति ९ चैत । अर भसप्त शम गुजन समीप H परन उदार देपनम् । पुनीत सरि उमरदरप्ति साज नाना प्रशीप थी। चंदन सा बद सै: म्य; घा जा चंद्रिका से। दीप धप धाया बस गदने भईप की 1 (६८५) यनो पदीजन, ६'ती, जिला रायबरे वाले। ये मद्दशिय इसी नाम के असी पाले फदि से इतर हैं। इन दे प्रन्थ पर पहुव से मैंठी इद हमारे देश में आये है । अपने टिकैतरापप्रकारों में इन्होंने अपने फुल का वर्णन किया है, जिससे विदित होती ६ कि ये अरघ के प्रसिद्ध पनीर महाराजा टिकैतराय के माधय में रो थे। इसके पूर्वपुरुष साहेव राय ने जयपूर, जोधपूर भार उदगपूर में मान पाया था चार अम्वू, घीनाथ ओर पदारनाप की भी यात्रा की थी । कतै है कि घनऊ के प्रसिद्ध कवि वेनीयन से एक बार इनसे पाद हुम या भर तबसे इन्ने उन्हें प्रवीन चैनी की उपाधि दी। इनके पले अन्ध 'टिकेतरीयप्रकाश में अलंकारों का विपय कहा गया हैं। पति गुगलकिदीर के पास यद्द अपूर्ण है, परन्तु इमने यह प्रन्य भी देगा है, जो लगभग मुस्ताङ्गत ५६ पृष्ठे घा हो इसकी रीना मन प्रशंसनीय न देने पर भै म है। पद सघन