पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०१

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मित्रपन्धुति। [म १८६० टीका, भाषा व्याकरण, मसादिर भापा, मिदासनवत्तीसी, पता- पासी, मधियानल और शकुन्तला । ये मादाय पर्तमान गद्य के जन्मदाता ६ जाते हैं । इनके प्रथम बहुत से गद्यन्टेक हो गये है, पर उग भन्य न से कठिन थे पार न पसे म्यान ही हुए। इन्दने दादा आदि भी अच्ॐई ६। म कक्षा १ दृष्टि से इन्दै साधारण ध में रखने ६।। उदाहरण प्रेमसागर से :-- शुकदेव जी वाले कि राजा एक समय पृथ्यो मनुष्य तन धारण कर यति कठिन तप करने लगी। तह प्रण विष्णु रुद्र इन तीनै दैवता ने प्रा पिस से पूछा कि तू किस लिये इतनी कटिन तपस्या करता है। धरती याली शृपासिंधु ! मुझे पुत्र की वांटी है। इस कारख मा तप करता हूं। दृय फर मुझे एक पुत्र अति च वन्त मादर प्रताप, वडा तेजस्वी दी. ऐसा कि जिस्का सामना संसार में फेई न करे, न वद रिंसी के हाथ से मरे । यद्द वचन सुन प्रसन्न हा ताने मैवताय ने बर दे उस्से कहा कि तेरा सुत भोमासुर नाम अति अली महा प्रतापी होगा। लब्ज़ी लाल का जन्मकाल १८२० के लगभग है और संवत् १८८१ में ये जीवित थे । निक मरण का सवत् इम लागेर फी ज्ञात नहीं है। ये अमिरचीसी पदीच्य गुजराती प्रादाया ये और जीविकार्य मुर्शिदाबाद क्या कलकत्ते में रहे। | ( १११७) सदल मिश्र । चर्तमान गद्य के जन्मदाता सदुल मिश्च यार छन्त्र जी लाल