पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५१५

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११६ मिथुधिने । | [सं० १६०० मषुम तिन्ध चिल्वा मन मा । माम चाए सम भृगुट्टि विराने । अर्थः षन्ति सुप्त अनि यि द्रा ।। यविधि सकल राम अगा। fia चुमति जननी मुल संग ॥ नाम (११२८) सागर थाजगे ऊँचे थार्छ । मन्थयामा मनरंजन ।। जमफाल–१८७३। मराद्ध-१८35 ) विचरण–प छनक पाले महाराजा टिकैतराय के गए थे। निका मई ग्रन्थ हमारे देग्नंगे न पाया, परन्तु मापकी फुट फना सगा में धुत पाई जाती है, । मतभा में मोगादिनी है 1 दम इनफा पद्माकर की धे यो में समझते हैं। जाके सेाई जाने दिया परपर में उपहास कर ना ! सागर र चित में जुभि झाप्त हैं केटि झपाय फरी विसरै ना ॥ नैक सी कॉकरी जाके पर सु ता पीर के कारन धीर, घरे नी । पूरी सनी फल कैसे पर जब अति में अखि परे निसर्दै नर । १ ११२६ } खुमान । हा बसिह झा के मतानुसार इनका जन्म सवत् १८e विक्रमीय का धा धैर ये धुंदेल्पड़ में चरपारी राजधानी में निवासी बदौन थे । जच से भी इनफा पताकाल १८७० समझ