पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५१७

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भिप्रप्रभुः ।। | | १० १८७५ रामन याना मनधन हो पाना।। रिंदारनि ६ प्राप्त धा धावा एचर पे ।। पहने हैं कि ये मादाय अन्य थे। एफ, संग्रा की कृपा से इदं पिता या वाघ ५ । । न घर भाग वान र मदिरा पा की ६ । ६ पाने में य ग में । (११३०) धनीराम भट्ट ।। ६ माशय असन जिला फुनैपुर में पास हामटू कवि चार पै पुग्न र पिर पयं सेवकराम के ना थे । इन पंद्य फाय पन तैयफ ा प समाळेचना में प्रष्टय है। इन्दगि पापू आनफीप्रसाद दायास के माधय । मन्द * नाम पर दमयंका पर्व मुखिरामयिन बी रग र रामाय. मेर तथा काव्यप्रकाश के अनुसार्द किये, जिनमें काव्यप्रकाश का उप पड़े धी पकाई पर्यत । सकी।इनकी सूफुट धना पागवि- सास में यक्ष तन्न कवि खेपक ने लिया है। इनका कोई अन्य मुद्रित नए प्रा और न हमने दैया है। यह समालोचन फुट पचिता है अश्य से लिया जाता है। ग्रीन में रामगुदय नामकनका एक अन्य भी लिखा है। धनीराम जी के जन्म मर याद के समय सेवक की जीवनी में नहीं दिये गये है। अनुनान से जाना जाता है कि इनका जन्म लगभग्र सं० १८४० के हुमा मा भर पदाचित् थे ५० वर्ष से अधिक जीवित न रहे हैं, क्योंकि इनको फायग्नकाश। , अपूर्ग ( गया । इनका कविसर-काल १८० १ हजम समझ ' पड़ता है । वे महाशय संस्कृत के छाता जान पड़ते हैं । भाषा