पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५४८

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पशकर ] इत्तरार्णकृत प्रकरश । ६१७ पाकर भई वैलंग झाकण थे। उनका जन्म संवत् १८१० में | दा में हुआ पैर संवत् १८२० में मैं कानपुर में गंगातट पर स्वर्गवाली हुए। इस देश में तैलंगियीं फी माथुर और गाय नामक दो शाखायें हैं । पद्माकर में जगल्लिाद के कई अध्यायै के अन्त में लिन्ना है कि “मथुरायाने मोहनलालभद्दात्मज कवि परिचित,' जिलले जाने पड़ता है कि ये मयि माधुरी ॐ ४ । ३ लीग अत्रौत्री हैं। मधुकर भट्ट की पनि पदी में जनार्दन भट्ट उत्पन्न हुए। इनके पाँच पुत्रथै, अर्थात् अजू. गुधर. मानलाल, क्ष भनिधि और भीष्य! १ भादनलाल थदा नगर ३ संवत् १७४३ में वपन्न हुए। ये महाशय पूरे पण्डित ने पे अतिरिक्त कवि भी थे । आप पहुॐ नगर के महाराजा रघुनाथ राय उपनाम अप्पर साढ्ष के यहीं रहे और फिर सं १८०१ में पा के महाराज हिपति के शुद्ध जाकर उनके मन्त्रशुद्ध हुए। और उन्हें इन्हें पाँच गाँव भी दिये ! घर से निकाली जय- पुर के नरेश प्रतापसिंह के यहां गये। ये महाराज संवत् ३८३६ में सिंहासनारूढ़ और संवत् १८६० में पचास हुए । प्रतापछि माधवसिंह के पुत्र थे। इन्हीं के पुत्र महाराजा जगसिंद थे, जी भगन् १८३६ नै गद्दी पर बैठे । इन्हीने १७ वर्ष तक त्य किया। प्रतापसिंह के मद्द मानहाल में एक इथा, आमा, सुवर्णपदक, तथा कविशिशिरोमणि की पदधी पाई। पद्माकर मदनलाल भट्ट के पुत्र थे। विम पढने में इन्होंने सुप्त और प्रान्त का भी अच्छा अभ्यास किया था। मैं महाराज । 'सुगर' में नेाने अर्जुनदि के मन्न हुए। इनके घंधर