पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५७

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मिश्शु विनात् । [ सं १८७६ | न कर सकता । जाम पड़ता है कि रोगी है। जाने के कारण पाषर अपने फै। इस जन्म फी पापी समझते थे, इसी पाया | उन्होंने ऐसे दोन पाय फटे हैं। अन्य पयि फी भति एमाफरी ने प्रधानतः शृगार:- फता न करके पीर पर भनि पक्ष का काम बहुत अधिक किया है। इनके सात ग्रन्थों में केवल द्रनाद में ऋगार काय है, परन्तु समय में कुचक में इनका केवल यहीं अन्य परम प्रसिद्ध हुने । पग्राफरी ने संवत् १८९० में गंगाज़ी के किनारे कानपुर में शरीर-त्याग किया । भन्ने लाच घपय दा किये घर में सदैव बड़े अदमि की भति महाराजा से सम्मान पावर रहते रहे और अन्त में पुत्र-पत्रों से सम्पन्न है, अस्सी वर्ष की वृद्धावस्था में श्रीगंगाड़ी के किनारे देवताओं फी भांति यह संसार छाड़ कर, देवलेाक की यात्रा कर गये । इनके लिए कविता कामधेनु है। गई । इस प्रकार सुन्नपूर्वक बहुत कम कवि का समय वीता। अपने चिपय में पद्माकर ने केवल एक निज़लिपिन छन्द बनाया है, जिससे इन मच-पू जीवनी का पूरा परिचय मिटता है। भट्ट तिलँगने के। वें वेल संङ बासी नृपः सुजस मासो पदुमाकर नामा । जारल फर्विस छन्द छप्पय अनैक भति | संसरत प्रारूत पढ़ी जु नि आमा हो ।