पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६७

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| ty frry । [१० १८०३ . प्रध भई अमि पड़, गन् रद्द ग्राहचा विवा का #म- मात्र । यहाँ २११ उF भार पाही उत्तर प्रशंसनीय है। गणपन्, 'परमगु ग्यादि सय पी थे, अतर्गत ६। इसकी यमुनाटपरी में, पाठ फी न भी है। इमर्च, अतिरिक्ष, इनफर या नशिप भी टाकुर दिषद से गर के पुजालप ६ ६ ६, आ पंवत् १८८४ या चित ।। इनका प्रन्थ सिकानंद ज़ की रिपेट में किया है, और धामधिपमिलन ना धाएषः नाम है। प्रेय दुमके फ६ जातै ।६।। ग्याल ने मशीपा में चिंता की है और यह् मांसनीय भी ६। यमुना की बदसा में इन्नै मन रस र पटू रतु भी दिये हैं। इन अनुप्रास और जमक, यहून पप्त में धार इन कविता में इनका प्रयोग भी बहुत श है। संयन् निधि र रिसिसि पातियः मास दुरुप्तान। पूरनमासी परम प्रिय राधा दूर फं। यान ।। इयाछ जमुना के सारेर नाकै भयें चित्रगुप्त, पैन करुन के वाझि गरी मनि र गई । क्रन गई पर में कालम आने काम करे, | राप्त की दृयाइति से सनाई ध्वं गई ॥ चाल' कवि काहे ते न कान ६ जर्मस सुनै, नोकरीं चुकाय फE! तेरी आँग्रि ी गई। हेषा भया इनो रोनाभा फी ससा भी, साता भया परान फरद रद ६ गई ।।